किसी भी काव्य को पढ़ने से पहले उसके सभी अंगों की जानकारी आवद्गयक होती है। इस पाठ्यक्रम का यही उद्देद्गय है कि काव्य को पढ ने से पहले उसका सही रसास्वादन करने के लिए काव्यांग परिचय प्राप्त करना।
रसः अर्थ व स्वरूप
रस के अवयवः स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव, संचारीभाव
रस के भेदः श्रृंगार, हास्य, करूण, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शांत
छंदः परिभाषा, छन्द के उपकरण गण विधान
छंद के भेदः
(क) वर्णिक छन्द-उपेन्द्रवज्रा, इन्द्रवज्रा, मालिनी
(ख) मात्रिक छन्द-चौपाई, रोला, दोहा, बरवै, सोरठा, छप्पय, कुण्डलियाँ
अलंकारः परिभाषा व भेद
शब्दालंकारः अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति
अर्थालंकारः उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, भ्रांतिमान, अतिद्गयोक्ति, संदेह, विरोधाभास, विभावना
शब्द शक्तिः अभिधा, लक्षणा, व्यंजना
काव्य गुणः ओज गुण, प्रसाद गुण, माधुर्य गुण
परिभाषा
भेद- श्रुतिकटुत्व, ग्राम्यत्व, अद्गलीलत्व, क्लिष्टत्व, अक्रमत्व।
रस छंदालंकार-डॉ. रमाद्गांकर शुक्ल, लोक भारती प्रकाद्गान, १५, ए, महात्मा गांधी मार्ग, इलाहाबाद।
रस, अलंकार, छंद तथा अन्य काव्यांग-डॉ. वेंकट शर्मा, कॉलेज बुक डिपो, त्रिपोलिया बाजार, जयपुर।
काव्यांग परिचय-डॉ. गोरधन सिंह शेखावत, दी स्टूडेण्ट्स बुक कं. जयपुर।
काव्यांग प्रकाद्गा-डॉ. विजयपाल सिंह, विद्गव विद्यालय प्रकाद्गान, वाराणसी।