Hindi
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Hindi [1]

Paper Code: 
FHI100
Credits: 
2
Contact Hours: 
30.00
Max. Marks: 
100.00
Unit 1: 
पद्य
6.00
 सूर्यकांत त्रिपाठी निराला‌:(क) जागो फिर एक बार (ख) तोड़ती पत्थर
रामधारी सिंह दिनकर: (क)हिमालय के प्रति (ख)बुद्धदेव (बोधिसत्व)
हरिवंश राय बच्चन :(क)पथ की पहचान (ख)लहरों का निमंत्रण(केवल छः भाग)

 

Unit 2: 
गद्य
6.00
कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर': मैं और मैं
हरिशंकर परसाई: इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर
महादेवी वर्मा: सिस्तर का वास्ते

 

Unit 3: 
शब्द निर्माण
8.00
 
हिंदी वर्तनी और उसका मानकीकरण 
उपसर्ग: (हिंदी उर्दू और संस्कृत

प्रत्यय:                                                                                                                     संधि :    (केवल स्वर- दीर्घ, गुण, यण, वृद्धि, अयादि)
समासः  (अव्ययीभाव, द्वंद्व, द्विगु, कर्मधारय, तत्पुरूष, बहुब्रीहि)

 

Unit 4: 
शब्द भेद एवं पदान्वय
6.00

संज्ञाः     (व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, भाववाचक)
सर्वनामः (पुरूषवाचक, अनिष्चयवाचक, निष्चयवाचक, प्रष्नवाचक, सम्बन्धबोधक, निजवाचक)
विशेषणः (गुणवाचक, संख्यावाचक, परिमाणवाचक, सार्वनामिक विशेषण)
क्रियाः     कर्म के अनुसार (सकर्मक, अकर्मक),
क्रिया विशेषणः (काल वाचक, स्थानवाचक, परिमाणवाचक, रीतिवाचक)

Unit 5: 
शब्द संपदा
4.00
 विलोम पर्यायवाची,अनेकार्थी, वाक्यांश के लिए एक शब्द,
 मुहावरे व लोकोक्तियाँ (राजस्थानी)
शब्द और वाक्य शुद्धि

 

Essential Readings: 

राजस्थानी लोकोक्तियाँ

बाहर बाबू सूरमा, घर में गीदड़दास।
अर्थ - बाहर जा कर स्वयं की शेखी बघारना लेकिन घर में डरपोक बने रहना।

पाँच सात की लाकड ी, एक जणै को भार।
अर्थ - बोझ को यदि बाँट लिया जाए तो बोझ नहीं रहता, यदि एक पर डाला जाए तो भार बन जाता है।

बाप बड ो ना भय्यौ, सबसे बड ो रूपय्यौ।
अर्थ - आज के समय में कोई भी रिद्गतेदारी महत्व नहीं रखती है, केवल पैसे की ही पूजा होती है।

पूत सपूता क्यूँ धन संचे, पूत कपूता क्यूँ धन संचै।
अर्थ - यदि पुत्र सपूत हो तो धन संचय की कोई आवद्गयकता नहीं है, वह स्वयं कमाकर खा लेगा और यदि पुत्र कुपुत्र हो तो भी धन जोड ने की आवद्गयकता नहीं है क्योंकि वह सारा जोड ा हुआ धन उड ा देगा। अर्थात्‌ दोनों अवस्थाओं में धन जोड ना व्यर्थ है।

करम में लिखया कंकर तो के करै सिवसंकर।
अर्थ - यदि भाग्य में ही दुख लिखा हो तो ईद्गवर भी कुछ नहीं कर सकता।

थोथो चणो बाजे घणो।
अर्थ - जिनमें गुण नहीें होते वे बढ  चढ  कर बातें करते हैं।

जनमै जद जा दीख, पूतां रा पग पालणे।
अर्थ - मनुष्य के गुण और अवगुण उसके जन्म से ही दिखाई देने लगते हैं।

अंबर को तारो हाथ सूं कोनी टूटै।
अर्थ - असंभव कार्य को संभव नहीं किया जा सकता।

अक्कलमंद नै इसारो घणो।
अर्थ - बुद्धिमान को इद्गाारा काफी है।

अठी नै पड ै तो कूवौ, वठी ने पड ै तो खाड।
अर्थ - सभी ओर से विपदा का आना।

अलख राजी तो खलक राजी।
अर्थ - जिस पर ईद्गवर प्रसन्न हो, उस पर सारा संसार प्रसन्न रहता है।

आंगली पकड तौ-पकड तौ पूंचो पकड  लियो।
अर्थ - ज रा सा आश्रय पाकर पूर्ण आधिपत्य जमा लेना।

आया री समाई पण गया री समाई कोनी।
अर्थ - लाभ कितना ही हो मनुष्य सहन कर लेता है, पर हानि को सहन नहीं कर सकता।

ऊंदरी रा जाया बिल ई खोदै।
अर्थ - परम्परागत कार्य बच्चे स्वतः सीख जाते हैं।

ओछा बोल छाकुर जी ने छाजै।
अर्थ - अभिमान में बोलना ईद्गवर को ही शोभा देता है।

कठै राजा भोज, कठै गांगलो तेली।
अर्थ - दो असमान हस्तियाँ या आकाद्गा पाताल का अंतर।

कथनी सूं करणी दोरी।
अर्थ - कहना सरल लेकिन करना कठिन होता है।

कागा रे तू मळमळ न्हाय, थारी काळस कदे नै जाय।
अर्थ - दुष्ट की दुष्टता तीर्थ और व्रत से दूर नहीं होती।

References: 

साहित्य खण्ड: पद्य की निर्धारित रचनाओं के लिए उपलब्ध पुस्तकें
1.    काव्यधारा - सं. डाॅ. राजकुमार सिंह परमार, इंडिया बुक हाऊस, जयपुर
2.    पद्य संचयन - डाॅ. मकरन्द भट्ट  साक्षी पब्लिषिंग हाउस, जयपुर।
3.    गद्य प्रभा - सं. डाॅ. राजेष अनुपम, युनिक बुक हाउस, जयपुर।

व्याकरण खण्ड - सहायक पुस्तकें
1.    हिन्दी भाषा ज्ञान - डाॅ. हरिचरण शर्मा, राजस्थान प्रकाषन, जयपुर
2.    हिन्दी भाषा, व्याकरण और रचना - डाॅ. अर्जुनतिवारी, विष्वविद्यालय प्रकाषन, वाराणसी।
3.    परिष्कृत हिन्दी व्याकरण - बदरी नाथ कपूर, प्रभात प्रकाषन, दिल्ली।

Academic Year: 
2014-15 [2]

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