HINDI

Paper Code: 
AHIN 200A
Credits: 
2
Contact Hours: 
30.00
Max. Marks: 
40.00
Unit 1: 
पद्य:
6.00

सुभद्रा कुमारी चैहान: वीरों का कैसा हो बसंत
 सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ः (क) जागो फिर, एक बार (ख) तोड़ती पत्थर
 हरिवंश राय बच्चनः (क) पथ की पहचान (ख) लहरों का निमत्रंण (केवल छः भाग)
 केदार नाथ अग्रवाल: (क) यह धरती है उस किसान की

Unit 2: 
पद्यः
6.00

महादेवी वर्मा: सिस्तर के वास्ते
हरिशंकर परसाईः वैष्णव की फिसलन
ऊषा प्रियवदाः वापसी

Unit 3: 
शब्द निर्माण एवं शब्द सम्पदा
6.00

 प्रत्ययः व उपसर्ग
संधि (केवल स्वर- दीर्घ, गुण, यण, वृद्धि, अयादि
समासः (अव्ययीभाव, द्वंद्व, द्विगुु, कर्मधारय, तत्पुरूष, बहुब्रीहि)
मुहावरे व लोकोक्त्तियाँ (राजस्थानी)
विलोम, पर्यायवाची

Unit 4: 
व्याकरणिक कोटियाँ
6.00

संज्ञाः (व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, भाववाचक)
सर्वनामः (पुरूषवाचक, अनिश्चयवाचक, निश्चयवाचक, प्रश्नवाचक, सम्बन्धबोधक, निजवाचक)
विशेषणः (गुणवाचक, संख्यावाचक, परिमाणवाचक, सार्वनामिक विशेषण)
क्रियाः कर्म के अनुसार (सकर्मक, अकर्मक),
क्रिया विशेषणः (काल वाचक, स्थानवाचक, परिमाणवाचक, रीतिवाचक

Unit 5: 
प्रयोजन मूलक हिन्दी: प्रयोग के क्षेत्र
6.00

1- संक्षेपण -महत्व, प्रक्रिया, विशेेषताएँ एवं सक्षेपक के गुण
2- पल्लवन - महत्व, प्रक्रिया, एवं भाषा
3- प्रतिवेदन - (रिपोर्ट) परिभाषा, प्रारूप, प्रक्रिया एवं प्रशासनिक पत्राचार

Essential Readings: 

राजस्थानी लोकोक्तियाँ

1-    बाहर बाबू सूरमा, घर में गीदड़दास।
अर्थ - बाहर जा कर स्वयं की शेखी बघारना लेकिन घर में डरपोक बने रहना।

2-    पाँच सात की लाकड़ी, एक जणै को भार।
अर्थ - बोझ को यदि बाँट लिया जाए, तो बोझ नहीं रहता, यदि एक पर डाला जा, तो भार बन जाता है।

3-    मीठा खरबूजा खांड सू खावो, काची काकड़िया रै लूण लगावौ।
अर्थ - सज्जन व्यक्तियों से मेल जोल रखो और दुर्जन से किनारा करो।

4-    पूत सपूता क्यूँ धन संचे, पूत कपूता क्यूँ धन संचै।
अर्थ - यदि पुत्र सपूत हो तो धन संचय की कोई आवश्यकता नहीं है, वह स्वयं कमाकर खा लेगा और यदि पुत्र कुपुत्र हो तो भी धन जोड़ने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह सारा जोड़ा हुआ धन उड़ा देगा। अर्थात् दोनों अवस्थाओं में धन जोड़ना व्यर्थ है।

5-    मनख धारे जो करे।
अर्थ - मनुष्य जो सोचता है कर दिखाता है।/ पुरूषार्थी के लिए कुछ भी असम्भव नहीं।

6-    थोथो चणो बाजे घणो।
अर्थ - जिनमें गुण नहींे होते वे बढ़ चढ़ कर बातें करते हैं।

7-    जनमै जद जा दीख, पूतां रा पग पालणे।
अर्थ - मनुष्य के गुण और अवगुण उसके जन्म से ही दिखाई देने लगते हैं।

8-    अंबर को तारो हाथ सूं कोनी टूटै।
अर्थ - असंभव कार्य को संभव नहीं किया जा सकता।

9-    अक्कलमंद नै इसारो घणो।
अर्थ - बुद्धिमान को इशारा काफी है।

10-    अठी नै पड़ै तो कूवौ, वठी ने पड़ै तो खाई।
अर्थ - सभी ओर से विपदा का आना।

11-    अलख राजी तो खलक राजी।
अर्थ - जिस पर ईश्वर प्रसन्न हो, उस पर सारा संसार प्रसन्न रहता है।

12-    आंगली पकड़तौ-पकड़तौ पूंचो पकड़ लियो।
अर्थ - ज़रा सा आश्रय पाकर पूर्ण आधिपत्य जमा लेना।

13-    आया री समाई पण गया री समाई कोनी।
अर्थ - लाभ कितना ही हो मनुष्य सहन कर लेता है, पर हानि को सहन नहीं कर सकता।

14-    ऊंदरी रा जाया बिल ई खोदै।
अर्थ - परम्परागत कार्य बच्चे स्वतः सीख जाते हैं।
15-    माखण तो दही सूं ईं निकले।
अर्थ - पुरूषार्थ से ही सफलता मिलती है/तपस्या से ही ज्ञान प्राप्त होता है।

16-    कठै राजा भोज, कठै गांगलो तेली।
अर्थ - दो असमान हस्तियाँ या आकाश पाताल का अंतर।

17-    कथनी सूं करणी दोरी।
अर्थ - कहना सरल लेकिन करना कठिन होता है।

18-    कागा रे तू मळमळ न्हाय, थारी काळस कदे नै जाय।
अर्थ - दुष्ट की दुष्टता तीर्थ और व्रत से दूर नहीं होती।

19-    कुण-कुण नै समझाइये, कुवै भांग पड़ी।
अर्थ - जब सभी अड़ियल रूख अपना लें तो किसे समझाया जाए।

20-    कीड़ी चाली सासरै, नौ मण सुरमौ सार।
अर्थ - जब गरीब अर्थात् अकिंचन व्यक्ति अधिक आडंबर करे।

21-    गयी भूख नै हेला पाड़ै।
अर्थ - जाती हुई भूख को न्यौता देना। जान बूझकर गरीबी को गले लगाना।

22-    गाय न बाछी, नींद आवै आछी।
अर्थ - किसी प्रकार का झंझट न होना।

23-    चोरी रो धन मोरी मंे जाय।
अर्थ - बेईमानी से कमाया धन शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।

24-    ठाकर तो ठिकाणै ई रूड़ा लागे।
अर्थ - जिसकी जो जगह होती है, वो वहीं शोभा देता है।

25-    भैंस रे आगे बीण बजाई, गोबर रो ईनाम।
अर्थ -गुण ग्र्राहक ही गुणों की कद्र कर सकता है।
 

क्रम सं- मुहावरे  पर्यायवाची “शब्द
1  आटे दाल का भाव मालूम होना    अमृत
2 आकाश के तारे तोड़ता    अश्व
3 अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना    असुर
4 आस्तीन का साँप होना    अरण्य
5 आकाश पाताल एक करना   अनुराग
6 आकाश का फूल होना   अम्बा
7 अरण्य रोदन    आँख
8 आँख का काजल चुराना    आकाश
9 एक अनार सौ बीमार    आम
10 उड़ती चिड़िया पहचानना    ईश्वर
11 कंगाली में आटा गीला    कमल
12 एक और एक ग्यारह होना    कनक
13 धरती पर पाँव न पड़ना    बादल
14 रंगा सियार    जल
15 शबरी के बेर    कामदेव
16 चूडियाँ पहनना    किरण
17 हाथ का मैल    ग्ंागा
18 गाल बजाना    चतुर
19 कदम चूमना    तलाब तलाब
20  सिक्का जमाना    निशा
21 तलवार की धार पर चलना    पवन
22 घी के दिए जलाना     पत्थर
23 लकीर का फकीर    पृथ्वी
24 दाल न गलना    पहाड़
25 आँधी के आम    पुष्प

 

References: 

साहित्य खण्ड: पद्य की निर्धारित रचनाओं के लिए उपलब्ध पुस्तकें
1-    काव्यधारा - सं- डाॅ- राजकुमार सिंह परमार, इंडिया बुक हाऊस, जयपुर
2-    पद्य संचयन - डाॅ- मकरन्द भट्ट  साक्षी पब्लिशिंग हाउस, जयपुर।
3-    गद्य प्रभा - सं- डाॅ- राजेश अनुपम, युनिक बुक हाउस, जयपुर।

व्याकरण खण्ड - सहायक पुस्तकें
1-    हिन्दी भाषा ज्ञान - डाॅ- हरिचरण शर्मा, राजस्थान प्रकाशन, जयपुर
2-    हिन्दी भाषा, व्याकरण और रचना - डाॅ- अर्जुनतिवारी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी।
3-    परिष्कृत हिन्दी व्याकरण - बदरी नाथ कपूर, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली।
4-    संक्षेपण और पल्लवन - कैलाश चंद्र भाटिया/तुमन सिंह, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली।

Academic Year: