सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’: जागो फिर एक बार, भिक्षुक
हरिवंशराय बच्चन: पथ की पहचान
नागार्जुन: प्रेत का बयान
दुष्यन्त कुमार: हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’: मैं और मैं
हरिशंकर परसाईः भोलाराम का जीव
महादेवी वर्माः घीसा
हिन्दी वर्तनी और उसका मानकीकरण
संज्ञाः (व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, भाववाचक)
सर्वनामः (पुरूषवाचक, अनिश्चयवाचक, निश्चयवाचक, प्रश्नवाचक,
सम्बन्धबोधक, निजवाचक)
विशेषणः (गुणवाचक, संख्यावाचक, परिमाणवाचक, सार्वनामिक विशेषण)
क्रियाः कर्म के अनुसार (सकर्मक, अकर्मक)
विलोम, पर्यायवाची, अनेकार्थक, वाक्यांश के लिए एक शब्द
मुहावरे और लोकोक्ति (राजस्थानी लोकोक्ति सहित) संलग्न सूची के अनुसार
विज्ञापन-स्वरूप और विशेषताएँ
विज्ञापन में प्रयुक्त हिन्दी।
संक्षेपण
राजस्थानी लोकोक्तियाँ
1- बाहर बाबू सूरमा, घर में गीदड़दास।
अर्थ - बाहर जा कर स्वयं की शेखी बघारना लेकिन घर में डरपोक बने रहना।
2- पाँच सात की लाकड़ी, एक जणै को भार।
अर्थ - बोझ को यदि बाँट लिया जाए, तो बोझ नहीं रहता, यदि एक पर डाला जा, तो भार बन जाता है।
3- मीठा खरबूजा खांड सू खावो, काची काकड़िया रै लूण लगावौ।
अर्थ - सज्जन व्यक्तियों से मेल जोल रखो और दुर्जन से किनारा करो।
4- पूत सपूता क्यूँ धन संचे, पूत कपूता क्यूँ धन संचै।
अर्थ - यदि पुत्र सपूत हो तो धन संचय की कोई आवश्यकता नहीं है, वह स्वयं कमाकर खा लेगा और यदि पुत्र कुपुत्र हो तो भी धन जोड़ने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह सारा जोड़ा हुआ धन उड़ा देगा। अर्थात् दोनों अवस्थाओं में धन जोड़ना व्यर्थ है।
5- मनख धारे जो करे।
अर्थ - मनुष्य जो सोचता है कर दिखाता है।/ पुरूषार्थी के लिए कुछ भी असम्भव नहीं।
6- थोथो चणो बाजे घणो।
अर्थ - जिनमें गुण नहींे होते वे बढ़ चढ़ कर बातें करते हैं।
7- जनमै जद जा दीख, पूतां रा पग पालणे।
अर्थ - मनुष्य के गुण और अवगुण उसके जन्म से ही दिखाई देने लगते हैं।
8- अंबर को तारो हाथ सूं कोनी टूटै।
अर्थ - असंभव कार्य को संभव नहीं किया जा सकता।
9- अक्कलमंद नै इसारो घणो।
अर्थ - बुद्धिमान को इशारा काफी है।
10- अठी नै पड़ै तो कूवौ, वठी ने पड़ै तो खाई।
अर्थ - सभी ओर से विपदा का आना।
11- अलख राजी तो खलक राजी।
अर्थ - जिस पर ईश्वर प्रसन्न हो, उस पर सारा संसार प्रसन्न रहता है।
12- आंगली पकड़तौ-पकड़तौ पूंचो पकड़ लियो।
अर्थ - ज़रा सा आश्रय पाकर पूर्ण आधिपत्य जमा लेना।
13- आया री समाई पण गया री समाई कोनी।
अर्थ - लाभ कितना ही हो मनुष्य सहन कर लेता है, पर हानि को सहन नहीं कर सकता।
14- ऊंदरी रा जाया बिल ई खोदै।
अर्थ - परम्परागत कार्य बच्चे स्वतः सीख जाते हैं।
15- माखण तो दही सूं ईं निकले।
अर्थ - पुरूषार्थ से ही सफलता मिलती है/तपस्या से ही ज्ञान प्राप्त होता है।
16- कठै राजा भोज, कठै गांगलो तेली।
अर्थ - दो असमान हस्तियाँ या आकाश पाताल का अंतर।
17- कथनी सूं करणी दोरी।
अर्थ - कहना सरल लेकिन करना कठिन होता है।
18- कागा रे तू मळमळ न्हाय, थारी काळस कदे नै जाय।
अर्थ - दुष्ट की दुष्टता तीर्थ और व्रत से दूर नहीं होती।
19- कुण-कुण नै समझाइये, कुवै भांग पड़ी।
अर्थ - जब सभी अड़ियल रूख अपना लें तो किसे समझाया जाए।
20- कीड़ी चाली सासरै, नौ मण सुरमौ सार।
अर्थ - जब गरीब अर्थात् अकिंचन व्यक्ति अधिक आडंबर करे।
21- गयी भूख नै हेला पाड़ै।
अर्थ - जाती हुई भूख को न्यौता देना। जान बूझकर गरीबी को गले लगाना।
22- गाय न बाछी, नींद आवै आछी।
अर्थ - किसी प्रकार का झंझट न होना।
23- चोरी रो धन मोरी मोरी जाय।
अर्थ - बेईमानी से कमाया धन शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
24- ठाकर तो ठिकाणै ई रूड़ा लागे।
अर्थ - जिसकी जो जगह होती है, वो वहीं शोभा देता है।
25- भैंस रे आगे बीण बजाई, गोबर रो ईनाम।
अर्थ -गुण ग्राहक ही गुणों की कद्र कर सकता है।
क्रम सं | मुहावरे | पर्यायवाची शब्द | अनेकार्थक शब्द |
1 |
आटे दाल का भाव मालूम होना | अमृत | अंक |
2 | आकाश के तारे तोड़ता | अश्व | अज |
3 | अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना | असुर | अर्थ |
4 | आस्तीन का साँप होना | अरण्य | अक्षर |
5 | आकाश पाताल एक करना |
अनुराग | अम्बर |
6 | आकाश का फूल होना | अम्बा | अरूण |
7 | अरण्य रोदन | आँख | आगम |
8 | आँख का काजल चुराना | आकाश | कनक |
9 | एक अनार सौ बीमार |
आम | कृपण |
10 | उड़ती चिड़िया पहचानना | ईश्वर | कर |
11 | कंगाली में आटा गीला | कमल | काल |
12 | एक और एक ग्यारह होना | कनक | गुरु |
13 | धरती पर पाँव न पड़ना | बादल | घन |
14 | रंगा सियार | जल | श्रुति |
15 | शबरी के बेर | कामदेव | गुण |
16 | चूडियाँ पहनना | किरण | कृष्ण |
17 | हाथ का मैल | गंगा | तीर |
18 | गाल बजाना | चतुर | द्रव्य |
19 | कदम चूमना | तलाब | कुंभ |
20 | सिक्का जमाना | निशा | वर |
21 | तलवार की धार पर चलना | पवन | नग |
22 | घी के दिए जलाना | पत्थर | चपला |
23 | लकीर का फकीर | पृथ्वी | पट |
24 | दाल न गलना | पहाड़ | वर्ण |
25 | आँधी के आम | पुष्प | क्षेत्र |
साहित्य खण्ड: पद्य की निर्धारित रचनाओं के लिए उपलब्ध पुस्तकें
1- काव्यधारा - सं- डाॅ- राजकुमार सिंह परमार, इंडिया बुक हाऊस, जयपुर, संस्करण 2008
2- पद्य संचयन - डाॅ- मकरन्द भट्ट साक्षी पब्लिशिंग हाउस, जयपुर,संस्करण 2008
3- गद्य प्रभा - सं- डाॅ- राजेश अनुपम, युनिक बुक हाउस, बीकानेर, संस्करण 2012 5. साये में धूप- दुष्यन्त कुमार, राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, बीसवाँ संस्करण 2009
6. गद्य-पद्य संचयन, डाॅ. अशोक गुप्ता एवं डाॅ.रजनीश भारद्वाज, राजस्थान प्रकाशन , जयपुर, प्रथम संस्करण 2004
व्याकरण खण्ड - सहायक पुस्तकें
1- हिन्दी भाषा, व्याकरण और रचना - डाॅ- अर्जुनतिवारी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, संस्करण 2008
2- परिष्कृत हिन्दी व्याकरण - बदरी नाथ कपूर, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली ,संस्करण 2014
3- संक्षेपण और पल्लवन - कैलाश चंद्र भाटिया/तुमन सिंह, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली।
4- प्रयोजन मूलक हिन्दी: सिद्धांत और प्रयोग - दंगल झाल्टे, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण 2007